अपने चोरी हुए फ़ोन को ढूंढ़ने की कोशिश करती एक पीआर एजेंट, मुसीबत में फंसा एक पॉलिटिशियन और गुमनामी में डूबता एक सेलेब्रिटी पाते हैं कि उनकी ज़िंदगियां आपस में अजीबोगरीब तरीके से उलझ गयी हैं.
अख्तर एक पुरानी दोस्त से जुड़ता है, सरिता को बर्दाश्त नहीं होता. प्ले की रिहर्सल करते हुए रश्मि और अबोध पास आते हैं. अंगद मजनू बने शॉन्टू की मदद करने के लिए राज़ी होता है.
सरिता एक बड़े फ़ैसले के बारे में सोच रही है. ताकत हासिल करने के लिए बेचैन धरम एक लोकल गुंडे से मिल जाता है, जो उसे यूनिवर्सिटी इलेक्शन में खड़ा होने के लिए मना लेता है.
ममता को इंप्रेस करने के लिए, शॉन्टू स्टूडेंट कम्युनिस्ट पार्टी जॉइन कर लेता है. शॉन्टू लगातार अंगद से खफ़ा है. घरेलू हिंसा की घटना से मुमताज़ का गुस्सा फूट पड़ता है.
इलेक्शन के बाद, धरम का गुस्सा उसे रश्मि, अंगद और बाबू भैया से दूर कर देता है. रश्मि, अंगद को दिल का हाल बताती है. सुधाकर और मुमताज़ एक नई शुरुआत करना चाहते हैं.